6 सितम्बर 2012
नई दिल्ली। फिल्म निर्देशक नीला मदहाब पांडा ने कहा कि बच्चों पर केंद्रित फिल्मों के अभाव के कारण बच्चों को हिंसा एवं कामुकता से भरी फिल्में देखनी पड़ती हैं। पांडा का मानना है कि फिल्मकार बच्चों से उनकी उम्र के मुताबिक व्यवहार नहीं करते। बच्चों के लिए पर्याप्त फिल्में नहीं बनने से निराश पांडा ने आईएएनएस को बताया, "इन दिनों बाल फिल्में नहीं बन रही हैं। वास्तव में हम बच्चों से बच्चों जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं। उनके साथ हमेशा बड़ों जैसा व्यवहार होता है। हम बहुत स्वार्थी हैं। हम बच्चों के साथ बैठकर 'देल्ही बेली' और 'राउडी राठौर' जैसी फिल्में देखते हैं।"
38 वर्षीय पांडा ने कहा, "हम बच्चों को फिल्मों में अपने साथ कामुकता और हिंसा दिखाते हैं। बाल सिनेमा की कमी के चलते पारिवारिक फिल्में भी घट गई हैं।"
पांडा को 'आई एम कलाम' और 'जलपरी: द डेजर्ट मरमेड' जैसी संदेश देने वाली बाल फिल्मों के लिए जाना जाता है।
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